यूं तो आज देशभर में आम बजट (Union Budget 2020) को लेकर सुगबुगाहट है लेकिन क्या आप जानते हैं कि आज ही के दिन देश की एक दिलेर और काबिल बेटी का एक हादसे में देहांत हो गया था. आइए आज एक बार फिर उन्हें श्रद्धांजलि दें और उनके सफर से परीचित हों. बेटा-बेटी को एक समान दर्जा देने का संघर्ष सदियों से भारत में चला आ रहा है. बेटे के जन्म पर थालियां और तालियां दोनों ही बजाई जाती है. वक्त बदल गया है, लेकिन गाने के बोल आज भी ‘मेरा नाम करेगा रोशन जग में मेरा राज दुलारा ही’ है. मिला-जुलाकर कहा जाता रहा है कि घर में बेटा जन्म ले तो ज्यादा अच्छा है. दौर बदल रहा है और लोगों की मानसिकता में भी तेजी से बदलाव आ रहा है.
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आज देश की बेटियां वैश्विक स्तर पर नाम रोशन कर रही हैं. जिस दौर में लड़के और लड़कियों में फर्क किया जाता था, उस दौर में देश की बेटी कल्पना चावला ने अंतरिक्ष की उड़ान भरी.
Bạn đang xem: जहां बेटियां पैदा होने के लिए तरसती थीं, वहां कल्पना चावला ने सपनों में देखा था आसमान
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धरती तक सीमित नहीं सपने.. अब जिसका नाम ही कल्पना हो तो उसके सपने जमीन तक कैसे सीमित रह सकते हैं. बचपन में ही कल्पना ने अंतरिक्ष में उड़ान भरने का सपना देखा और इसे सच कर दिखाया. कल्पना भारत की पहली महिला अंतरिक्ष यात्री थी, जिन्होंने 19 नवंबर 1997 को अंतरिक्ष में अपनी पहली उड़ान एसटीएस 87 कोलंबिया शटल से भरी. अंतरिक्ष की यात्रा करने से पहले कल्पना ने कहा था कि वो अंतरिक्ष के लिए ही बनी हैं. उन्होंने अरबों मील की यात्रा तय की, पृथ्वी की 252 परिक्रमाएं पूरी की और लोगों की कल्पना से परे 372 घंटें अंतरिक्ष में बिताए.
नासा ने भी बनाई खास पहचान कल्पना चावला का जन्म 17 मार्च 1962 में हरियाणा के करनाल में हुआ था. पहले सफल अंतरिक्ष मिशन के बाद कल्पना ने नासा में एक अलग छाप बनाई. इसके बाद नासा ने अगले पांच साल से भी कम समय में अपने जनवरी 2003 के कोलंबिया अंतरिक्ष यान एसटीएस-107 मिशन पर उन्हें न सिर्फ दूसरी बार अंतरिक्ष यात्रा पर भेजने का फैसला लिया. इस मिशन में कल्पना को 7 सदस्यों की टीम में खास स्थान दिया गया. दूसरी बार कल्पना के अंतरिक्ष मिशन की खास बात यह थी वह अपने ग्रुप में इकलौती महिला सदस्य थीं. एक फ़रवरी 2003 को कोलम्बिया से वापस लौटते वक़्त स्पेस शेटल में आग लग जाने के कारण शटल में सवार कल्पना चावला समेत सभी सात एस्ट्रोनोट मौत का शिकार बन गए.
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पिता ने दिया भरपूर साथ
कल्पना अपने परिवार के चार भाई बहनों में सबसे छोटी थी. घर में सब उसे प्यार से मोंटू कहते थे. कल्पना की प्रारंभिक पढ़ाई टैगोर बाल निकेतन में हुई. कल्पना जब आठवीं कक्षा में पहुंची तो उसने इंजीनियर बनने की इच्छा जाहिर थी. कल्पना की इच्छा और सपने को पूरा करने में उनकी मां ने मदद की. हालांकि कल्पना के पिता उन्हें डॉक्टर या टीचर बनते हुए देखना चाहते थे, पर कल्पना के जज्बे और हौंसलों के आगे पिता झुक गए और उन्हें आगे बढ़ाने में मदद की. ये उस दौर की बात है जब हरियाणा में बेटियों को पैदा होते ही मार दिया जाता था. कोई नहीं चाहता था कि बेटियां उनके घर में जन्म लें. ऐसे वक्त में कल्पना ने आसमान के सपनों को देखा और उसे हकीकत में तब्दील कर दिखाया था.
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Danh mục: स्वप्न डिकोडिंग
This post was last modified on November 18, 2024 7:01 pm